भ्रम
दूर पेड़ों के झुरमुट में ,पहाडों के बीच
जलती टिमटिमाती लौ को देखा
मन में एक प्रश्न कौंधा -जानना चाहा --कौन है ?
कौन है -जो अंधकार को भगा रहा है ,
अपने दीप का तेल जलाकर ,रात को प्रकाश दिखा रहा है ,
निस्तब्ध नीरवता में अटल खड़ा है -
रातभर जागकर दूसरों के लिए लड़ रहा है ,
अपने जीवन की बलि देकर समाज सेवा कर रहा है -
कौन है ?जो इतना महान है
इरादे बुलंद हैं ,हम सा इंसान है ,
रात के सन्नाटे में सब सो रहे हैं ,
जो दुखी हैं वो रो रहे हैं
पर वह महान है जो इन सबसे दूर
नीरव पहाडों के बीच अपना सर्वस्य देकर ,
अंधकार को हटा रहा है
मन में कौतुहल सँजोकर -कुछ अनुत्तरित प्रश्न लेकर
मैं चल पडी उस दिशा की तरफ़ --
लोंगो की आवाजाही देखी तो --
मन मस्तक श्रध्दा से भर गया ,
टिमटिमाती लौ में मन सेवा भावः से भर गया ,
जब और पास गयी तो मन टूट गया ,
श्रध्दा और प्रेम का जल जो मन में था सूख गया ,
क्योंकि वहां कोई किसी का अन्धकार नही भगा रहा था --,
एक नेता शराब खाना चला रहा था --
शराब खाना चला रहा था .....
1 Comments:
हमारे समाज में व्याप्त नशे की बुराई पर करारी चोट करती कविता. अगर पहाडों के रूप में उत्तराखंड राज्य का उदाहरण लें तो राज्य को सर्वाधिक राजस्व शराब से ही प्राप्त होता है, कैसी विडम्बना या यूं कहें कि दुर्भाग्य है......
साभार
हमसफ़र यादों का.......
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home