मैंने तो बस बीज फेंका इस जहाँ में ,
तुम उसे हर रोज़ बस खाद देना ,
बन के जब वह व्रक्ष लहराएगा -
फूल और फल तुम ही चूम लेना ,
याद करना तुम मुझे -संकल्प मेरा -
कोई न रह जाए अनाथ यहाँ अकेला ,
मैं रहूं या न रहूं जब इस जहाँ में -
नाम न हो मेरा कहीं पर भी मैला ,
तुम हो मेरे अक्स और प्रतिबिम्ब मेरा -
दूर कर दो इस जहाँ का घनघोर अँधेरा ,
है सफल जीवन वही जो करे कुछ इस जहाँ में -
अपने तन के वास्ते ही आना नही ,क्या है झमेला ,
कर सको गर कर सकते हो देश हित में -
दींन के हित में सदा करते रहो तुम यूं सवेरा ,
है जो तन कोमल तुम्हारा .मिट्टी में मिल जाएगा
देह देकर राष्ट्र हित तुम जो करोगे ,बस नाम वह रह जाएगा
2 Comments:
अपने तन के वास्ते ही आना नही ,क्या है झमेला ,
कर सको गर कर सकते हो देश हित में -
दींन के हित में सदा करते रहो तुम यूं सवेरा ,
है जो तन कोमल तुम्हारा .मिट्टी में मिल जाएगा
देह देकर राष्ट्र हित तुम जो करोगे ,बस नाम वह रह जाएगा
aap ne bahut hi umda baten kahin
mere vitchar bhi kuch ayase hi hain
ayasa sochane wale kuch log bhi mil jaye to ak behtar kal ho sakta hai. jai hind
तुम हो मेरे अक्स और प्रतिबिम्ब मेरा -
दूर कर दो इस जहाँ का घनघोर अँधेरा ,
Bahut sunder , bhavpurn rachna hai...
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home