Sunday, June 7, 2009

अतृप्त मन

न जाने कितनी गुजारिश की है तुम्हारी और कितनी रात मुझे तड़पाओगे
देखती रही हूँ मैं उम्र भर यूँ ही ,न जाने कब मुझे देखकर मुस्कराओगे
मैं चली जाऊँगी इस जहाँ से यह तमन्ना लेकर ,फिर क्या कभी तुम मुझे प्यार कर पाओगे -
नसीब अपना होता है जो देता है सुख यहाँ ,क्या कभी मेरा नसीब बदल पाओगे ,
रात दिन मैं देती हूँ दुआएं तुमको ,जाते -जाते क्या मुझे दुआ दे जाओगे ,
आदत होती है जिन्हें टालने की -वह जिन्दगी का लुत्फ़ उठा नही पाते हैं ,
जब जिन्दगी ख़ुद बढ़कर गले लगायेगी ,मुझको पता है तब भी तुम टाल जाओगे ,
अभी भीड़ है चारों तरफ़ तुम्हारे यूँ ही ,जब अकेले होगे तो क्या मुझे भुला पाओगे ,

3 Comments:

At June 7, 2009 at 10:38 PM , Blogger Unknown said...

kya baat hai
waah waah___________________

 
At June 7, 2009 at 11:22 PM , Blogger अजय कुमार झा said...

जब एक ही गली में,
मकान है , हमारा तुम्हारा ,
तो आते जाते,या जाते आते,
कभी तो मिल जाओगे,
न निभा सके प्यार तो क्या,
नफरत तो निभाओगे......

आप अच्छा लिखती हैं...लिखती रहे...कोई है जो पढ़ रहा है.....

 
At June 10, 2009 at 10:50 AM , Blogger vijay kumar sappatti said...

aaj aapki saari kavitayen padhi .. aap bahut accha likhti hai .saari kavitao me bhaavo ki abhivyakti bahut hi shaandar tareeke se ho rahi hai ...shabdo ka asar dil me gahre utar jaata hai..is kavita me aapne pyaar ke different shades ko kitne asardaar tareeke se darshaya hai ...

aapko badhai ...

meri nayi poem " tera chale jaana " par apni bahumulay rai dijiyenga ..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html


aabhar

vijay

 

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