Monday, June 8, 2009

इन्तजार --एक यथार्थ

औरत नाम है एक इंतज़ार का ,
कभी ख़त्म न होने वाले इंतजार का ,
बचपन में इंतज़ार रहता है माँ बाप के प्यार का ,
ज़रा से तनाव से प्यार नफरत में बदल जाता है ,
अपनों का प्यार नसीब से निकल जाता है ,
जवानी में इंतज़ार रहता है जीवन साथी का ,
यह किस्मत है उनकी जो प्यार मिल पाता है साथी का ,
ऑफिस से आने पर घर में इंतजार रहता है ,
पगार का ,प्यार का ,अपने सपनों का ,
इंतजार बस इंतजार है
शादी के बाद आँगन फूलों से महके ,
बच्चों का इंतज़ार रहता है ,
परवरिश करते हुए उनके सोने जागने ,
खेलने पढने का इंतजार रहता है
पढ़ लिख कर कुछ बन जाए तो फ़िर ,
शादी का इंतजार रहता है ,
इस तरह आपाधापी में जिन्दगी गुज़र जाती है ,
और जब इंतजार पूरा होकर औरत देखती है ख़ुद को ,
तो ढलती उम्र में एक अदद सहारे का इंतज़ार रहता है ,
किस्मत वाली होती हैं वह जिन्हें सहारा मुयस्सर होता है ,
वरना तो एक किनारे का इंतजार रहता है ,
इस तरह जिन्दगी दूसरो पर लुटाकर ,
बिना इंतजार के बुढापा आ जाता है ,
सबकी कहानी एक सी होती है ,
बस किस्मत से थोड़ा अन्तर आ जाता है ,
जब सोचती है वह कब जी अपने लिए ,
क्या किया उसने सिर्फ़ अपने लिए ,
वक्त सब गुज़र जाता है ,जिन्दगी ठहर जाती है ,
बूढा वक्त ठीक से गुज़र जाए यह इन्तजार रहता है ,
बुढापे में तो बस मौत का इंतजार रहता है ,
इंतजार बस इंतजार रहता है ................

3 Comments:

At June 8, 2009 at 5:43 PM , Blogger अजय कुमार झा said...

औरत को आज एक और रूप में देखा और दिखया आपने...प्रभावित करने वाली रचना..आभार स्वीकार करें...

 
At June 9, 2009 at 12:19 AM , Blogger अनिल कान्त said...

aapne ek aurat ki sari zindgi bayaan kar di
behtreen rachna

 
At June 14, 2009 at 8:23 PM , Blogger Pradeep Kumar said...

aurat ke dard ko seedhe aur saral shabdon main kitni khoobsoorati se dhaala hai. aankhe bhar aai.
badhaai

 

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