इन्तजार --एक यथार्थ
औरत नाम है एक इंतज़ार का ,
कभी ख़त्म न होने वाले इंतजार का ,
बचपन में इंतज़ार रहता है माँ बाप के प्यार का ,
ज़रा से तनाव से प्यार नफरत में बदल जाता है ,
अपनों का प्यार नसीब से निकल जाता है ,
जवानी में इंतज़ार रहता है जीवन साथी का ,
यह किस्मत है उनकी जो प्यार मिल पाता है साथी का ,
ऑफिस से आने पर घर में इंतजार रहता है ,
पगार का ,प्यार का ,अपने सपनों का ,
इंतजार बस इंतजार है
शादी के बाद आँगन फूलों से महके ,
बच्चों का इंतज़ार रहता है ,
परवरिश करते हुए उनके सोने जागने ,
खेलने पढने का इंतजार रहता है
पढ़ लिख कर कुछ बन जाए तो फ़िर ,
शादी का इंतजार रहता है ,
इस तरह आपाधापी में जिन्दगी गुज़र जाती है ,
और जब इंतजार पूरा होकर औरत देखती है ख़ुद को ,
तो ढलती उम्र में एक अदद सहारे का इंतज़ार रहता है ,
किस्मत वाली होती हैं वह जिन्हें सहारा मुयस्सर होता है ,
वरना तो एक किनारे का इंतजार रहता है ,
इस तरह जिन्दगी दूसरो पर लुटाकर ,
बिना इंतजार के बुढापा आ जाता है ,
सबकी कहानी एक सी होती है ,
बस किस्मत से थोड़ा अन्तर आ जाता है ,
जब सोचती है वह कब जी अपने लिए ,
क्या किया उसने सिर्फ़ अपने लिए ,
वक्त सब गुज़र जाता है ,जिन्दगी ठहर जाती है ,
बूढा वक्त ठीक से गुज़र जाए यह इन्तजार रहता है ,
बुढापे में तो बस मौत का इंतजार रहता है ,
इंतजार बस इंतजार रहता है ................
3 Comments:
औरत को आज एक और रूप में देखा और दिखया आपने...प्रभावित करने वाली रचना..आभार स्वीकार करें...
aapne ek aurat ki sari zindgi bayaan kar di
behtreen rachna
aurat ke dard ko seedhe aur saral shabdon main kitni khoobsoorati se dhaala hai. aankhe bhar aai.
badhaai
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home