Saturday, June 13, 2009

दीप की व्यथा --मानव की कथा

एक दीप जल रहा था ,मन में यह आस लिए -
तेल कोई डालेगा प्यार के उदगार लिए -
इंतजार में कटी जिंदगी जो शेष थी -
तेल उसमें न पड़ा लौ बुझने लगी -
हँसके कहा दीप ने इस असीम विश्व से -
एक छोटा सा कोना क्या नहीं है मेरे लिए -
मुखर होके विश्व ने दीप से कुछ यूँ कहा -
नया दीप बन गया है जग की रौशनी के लिए ,
अशक्त हो तुम यहाँ ,क्या प्रकाश दोगे
तुमजो ख़ुद ही तेल मांग रहा ,क्या करेगा जग के लिए
देखकर विश्व के राग को दीप ने ,
मन में सोचा और विवेचना की ,
नश्वर इस संसार में ,स्वार्थ के सब रिश्ते हैं ,
जो सिर्फ़ अपने लिए जी रहे ,क्या करेगें मेरे लिए
सोचकर के दीप ने एक नि:श्वास भरी ,
आज जग छोड़ रहा मैं औरो के लिए ,
जान के अनजान के गर खता हो गई ,
माफ़ कर दो मुझे मेरी खता के लिए
और दीप बुझ गया मन में ये व्यथा लिए ,
चल दिया वो दीप अकेला -उस यात्रा के लिए
कौन किसके संग इस संसार में है बंधा
सब हैं एक दूसरे से बंधे अपने स्वार्थ के लिए
देखकर प्रिय जनों की खामोशी को ,
दीप हंसने लगा ,लौ बुझने लगी ,
रिश्ते छल हैं -नि:सार संसार को जान लिया ,
क्या करूँगा जीकर -जाता हूँ प्रयाण के लिए ,
और दीप चल दिया महाप्रयाण केलिए -
और दीप चल दिया महाप्रयाण के लिए ...............

2 Comments:

At June 13, 2009 at 1:15 PM , Blogger अनिल कान्त said...

wow ...behtreen likha hai aapne

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

 
At June 14, 2009 at 8:19 PM , Blogger Pradeep Kumar said...

देखकर प्रिय जनों की खामोशी को ,
दीप हंसने लगा ,लौ बुझने लगी ,
रिश्ते छल हैं -नि:सार संसार को जान लिया ,
क्या करूँगा जीकर -जाता हूँ प्रयाण के लिए ,
और दीप चल दिया महाप्रयाण केलिए -

rishte hote hi aise hain . shayad isiliye kisi mahaan shayar ne kahaa hai ki-
ajeeb sulagti hui lakdiyaan hain rishtedaar,

 

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