अनुबंध
आंख से निकलकर अन्दर नही जाऊंगा अश्रु का आंख से यही अनुबंध है ,
न कहकर भी दुःख को बहा ले जाऊंगा ,
सुखी होने पर भरी आंख से निहारूंगा ,
अश्रु का आंख से यही अनुबंध है ,
शब्दों के तीर चलाकर तरकश में न लौटूंगी
जिव्हा का मुख से यही अनुबंध है ,
शब्द मीठे हों या कसैले कहकर न वापस लौटूंगी
मानव के चरित्र को बयाँ कर जाउंगी
पढ़े लिखे का अन्तर डिग्री से न मापों तुम
शब्दों के माध्यम से मैं तुमको बतलाऊँगी ,
जिव्हा का अपने मुख से यही अनुबंध है ,
जीवन अच्छे बुरे कर्मों का लेखा -जोखा है
कर्मों को भोगकर मनुष्य निवृत हो जाता है ,
रिश्ता क्या है यह कोई नही जानता है
पर रिश्तों के बंधन में ही रह जाता है ,
अपनों की मार सेलुहुलुहान कर मानव तुझे
संसार की निस्सारता दिखाऊंगा ,आत्मा का शरीर से यही अनुबंध है
2 Comments:
प्रभाव शाली रचना...बहुत अच्छा लगता है आपको पढना...लिखती रहें...
नीरज
खूब बताया आपने अनुबंधों की बात।
सूरज का अनुबंध है होंगे दिन और रात।।
कृपया वर्डवरीफिकेशन का बंधन हँटाने का उपाय करें।
बसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
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