Sunday, June 14, 2009

अनुभव

हमने तो ख्वाब देखा था महफ़िल सजाने का ,
हमें तन्हाईयाँ मिली --
रात के अंधेरे में उजाला ढूंढा
तो हमें परछाइयाँ मिली
ज़ख्म जैसे भी मिले सीने में छिपाए हमने
फ़िर भी हमें रुस्वाइयाँ मिली ,
वो लोग और होते हैं जो दामन को खुशियों से सजा देते हैं
हमें तो वफा के बदले वे वफा इयान मिली ||

1 Comments:

At June 15, 2009 at 1:35 AM , Blogger अनिल कान्त said...

aapne bahut achchha likha hai
bahut bahut achchha

 

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