Wednesday, June 17, 2009

समर्पित प्यार

समर्पित प्यार

वेदना के इन स्वरों को अक्स अपना देते जाओ
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ
शवास मैं तो तुम बसे हो ,नि:शवास मैं तेरी ही सुरभि
प्रणय की बेला न आई ,फिर भी है तेरी महक ही
अर्घ्य दूंगी मैं तुम्हे ही- न इसको यूँ ठुकराओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
मैंने तुमसे कुछ न चाहा, बस तुम्हें ही अपना माना
तुमको चाहा तुमको पूजा इस जहाँ में तुमको जाना
दीपकों की आंख में देकर उजाला यूँ न तरसाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
स्वप्न को तुम यूँ न छेडो जी उठेगें इस नयन मैं
पुंज तारों का खड़ा है मचल उठेगें इस गगन मैं
दफन कर दो राग को अपने ह्रदय मैं ,फिर यूँ जाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
प्यास मेरी बुझ चुकी है भावमय सागर अनल में
होंठ मेरे तृप्त हो गए डूबकर तेरे विरह में
इस ह्रदय के भावः को न यूँ उजागर करके जाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ ||

2 Comments:

At June 17, 2009 at 10:14 AM , Blogger Vinay said...

बहुत सारा समर्पण निहित है इस सुन्दर काव्य में...


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गुलाबी कोंपलें

 
At June 17, 2009 at 10:44 AM , Blogger ओम आर्य said...

एक ऐसी कविता ......जिसे पढकर रोम रोम खडे हो गये ......अतिसुन्दर

 

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