समर्पित प्यार
समर्पित प्यार
वेदना के इन स्वरों को अक्स अपना देते जाओ
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ
शवास मैं तो तुम बसे हो ,नि:शवास मैं तेरी ही सुरभि
प्रणय की बेला न आई ,फिर भी है तेरी महक ही
अर्घ्य दूंगी मैं तुम्हे ही- न इसको यूँ ठुकराओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
मैंने तुमसे कुछ न चाहा, बस तुम्हें ही अपना माना
तुमको चाहा तुमको पूजा इस जहाँ में तुमको जाना
दीपकों की आंख में देकर उजाला यूँ न तरसाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
स्वप्न को तुम यूँ न छेडो जी उठेगें इस नयन मैं
पुंज तारों का खड़ा है मचल उठेगें इस गगन मैं
दफन कर दो राग को अपने ह्रदय मैं ,फिर यूँ जाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
प्यास मेरी बुझ चुकी है भावमय सागर अनल में
होंठ मेरे तृप्त हो गए डूबकर तेरे विरह में
इस ह्रदय के भावः को न यूँ उजागर करके जाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ ||
2 Comments:
बहुत सारा समर्पण निहित है इस सुन्दर काव्य में...
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गुलाबी कोंपलें
एक ऐसी कविता ......जिसे पढकर रोम रोम खडे हो गये ......अतिसुन्दर
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