Monday, June 29, 2009

एक सत्य

जिन्दगी में तृप्ति नहीं बस प्यास है आँख में न अश्रु है न हास है --
म्रत्यु तो है नवीन जिन्दगी ,नश्वर शरीर एक नग्न लाश है
जब धरा पर देह को रखकर चला ,मुस्कराए आंसू और रोतीरही हँसी-
अन्तिम यात्रा पर बढ़ी जब देह तब ,मौत मुस्कराई और रोई जिन्दगी
चेतना जब तक रही है देह में ,वह सदा ही अपरिचित ही रहा -
यह नियम संसार का है पुराना ,जब चला गया मेहमान तब पहचाना गया
हर प्रश्न का उत्तर किसे मालूम है ,सब निरुत्तर हैं यहाँ ,सब प्रश्न हैं -
एक दर्पण टूटकर सौ रूप धरता ,हर दर्पण में बस नश्वर अक्स है

4 Comments:

At June 29, 2009 at 3:21 PM , Blogger Nitish Raj said...

जब धरा पर देह को रखकर चला ,मुस्कराए आंसू और रोतीरही हँसी
गहरी रचना, अच्छी पेशकश।

 
At June 29, 2009 at 7:29 PM , Blogger M VERMA said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

 
At June 29, 2009 at 11:25 PM , Blogger Udan Tashtari said...

बहुत गहरी रचना!!

 
At July 2, 2009 at 11:45 PM , Blogger शोभना चौरे said...

ak sachhi rchna .

 

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