Friday, June 19, 2009

खामोश संदेश

चिडियों की चहचहा हट ,हवा का मंद मंद चलना ,
निस्तब्ध पेड़ों का खडा होना ,पत्तियों का मचलना ,
हलके हलके धूप की खामोशी में ,किरणों का फैलना,
रात्री में पडी ओस की बूंदों का -ख़ुद ब ख़ुद ओझल होना ,
प्रकृति की अदाएं हैं ,या प्रकृति का महकना ,
हम नहीं जानते -पर न जानकर भी हमारा मन महकता है ,
पेड़ों के समूह उठकर हमें सिखाते हैं ,
अपनी हरियाली का सागर हमें पिलाते हैं ,
और सीख देते हैं हमें -अनेकता में एकता की ,
पेड़ों का स्वरूप अलग है -पर रंग एक है ,
फूलों की महक अलग है -पर ढंग एक है ,
हवा का चलना अलग है- पर गति एक है ,
धूप की किरणों का फैलाव भी एक है ,
मानव तू कितने रूपों ,रंगों ,गंधों ,गति में रह
पर तेरा ध्येय एक रहे ,लक्ष्य एक रहे ,
यह प्रकृति का संदेश है ,.......
रे मानव ---तू सीख ,यह प्रकृति का संदेश है ....

1 Comments:

At June 19, 2009 at 1:24 PM , Blogger ओम आर्य said...

बहुत ही खुबसूरती से आपने एकता का पाठ पढाया है ..........एक एक पंक्तियाँ प्रकृति की भाषा बोल रही हो जैसे.............बहुत सुन्दर

 

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