Wednesday, June 17, 2009

ज़रा सोचिये तो कितना महत्व है ,

यह कविता नही तुकबंदी है ,पढिये और मुस्कराइए
ज़रा सोचिये तो कितना महत्व है ......
शादी में बराती का ,औजार में दरांती का
चुनाव में जाति का,खाने में चपाती का
बुढापे में लाठी का ,ननिहाल में नाती का
जीवन में साथी का ,प्यार में पाती का
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
ससुराल में साली का ,चाय की प्याली का
घर में नाली का ,बुर्के में जाली का ,
ताले में ताली का ,ट्रक में ट्राली का
बगीचे में माली का ,कवि सम्मलेन में ताली का
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
बच्चों के लिए नानी का ,सोते समय कहानी का ,
रंगों में रंग धानी का ,खाने में पानी का ,
धर्म में दानी का ,व्यापार में हानि का
संसार में प्राणि का ,जीवन में जवानी का
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
गाडी में गति का ,पढने में मति का ,
पीने में लती का ,चोरी में क्षती का
पुराणों में सती का ,काव्य में कृति का,
घर में पति का ,प्रेम में रति का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
ससुराल में देवर का ,सावन में घेवर का ,
औरतों में जेवर का ,मिल में लेबर का ,
आइसक्रीम में फ्लेवर का ,जीवन में कलेवर का ,
परीक्षा में फेवर का ,मौहल्ले में नेबर का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
मेट्रो में मोओल का ,फोन में काल का ,
माँ के लिए लाल का ,नौका में पाल का ,
लकडी की टाल का ,मुम्बई में चाल का
जीवन में काल का ,प्यार में गाल का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
मथुरा में मिठाई का ,त्योहार में हलवाई का ,
ससुराल में जमाई का ,पहाड़ में खाई का ,
दूध में मलाई का ,गाँव में लुगाई का ,
सर्विस में कमाई का ,सूट में टाई का,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
त्योहार में दिवाली का ,यात्रा में तैयारी का ,
चहरे में दाढी का,आवारागर्दी में मवाली का ,
कोर्ट में गवाही का ,महफ़िल में कव्वाली का ,
होंठो में लाली का ,नैनीताल में भवाली का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......|
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......||

5 Comments:

At June 17, 2009 at 3:00 PM , Blogger नीरज गोस्वामी said...

दरवाजे पे चिटकनी का
पोस्ट पे टिपण्णी का ...कितना महत्त्व है...:))
सुन्दर प्रस्तुति
नीरज

 
At June 17, 2009 at 3:09 PM , Blogger शेफाली पाण्डे said...

bahut badhiyaaa....

 
At June 17, 2009 at 6:00 PM , Blogger परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!! बहुत सुन्दर प्रयोग प्रस्तुत किया है।बधाई।

 
At June 17, 2009 at 8:30 PM , Blogger प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना अच्छी लगी.......बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....

 
At June 18, 2009 at 12:23 AM , Blogger Unknown said...

aapne jaldi brek laga diya
yah dhara bahut lambi.......................................ho sakti thi
badhaai !

 

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