आज का सत्य
औरत जीत कर भी अपना सब कुछ हार जाती है ,
मर्द हारकर भी सब कुछ जीतता रहता है
जिंदगी औरत की बड़ी कठिन है ,
जो इन्तजार के साए में ही पली है
माँबाप भाई के कठिन अनुशासन में पलकर -
हर वक्त सहमी सी जो बड़ी हुई है
ब्याह कर गई जब वह ससुराल -
तो हमेशा वहां के कायदों में ही उलझी रही है
माँ मारकर अपना भावनाओं से लड़कर ,
दूसरों के आधीन रहकर उलझनों से उबरती रही है
बच्चों और पति के लिए कर देती है जीवन अर्पण ,
पर क्या कोई शह औरत को समर्पित की गई है
आज बातें औरत की मुक्ति की करते हैं ,
पर इसी युग में औरत सबसे ज्यादा उजाड़ी गई है
हर क्षेत्र में उचाइयों को छूने पर भी ,
औरत की लाज सबसे ज्यादा लुटाई गई है
स्त्री -धन नाम था दहेज़ का उस युग में ,
पर दहेज़ के नाम पर सबसे ज्यादा जलाई गई है
पहले कभी-कभी सुनते थे युवा लडकी की लाज लुटी है ,
पर अब अबोध ,नादाँ ,बूढी ,युवा सभी ने लाज लुटाई है
पहले घर था बहुत सुरक्षित लडकी के लिए ,
अब तो घर में भी लडकी ने लाज लुटाई है
2 Comments:
हर एक शब्द में दर्द झलक रहा है यथार्थ लिखा है आपने
सच बहुत बेहतरीन तरीके से लिखा गया है ...आपकी रचना में दर्द है.....सच्चाई है
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