याद हरियाली तीज की
ये सावन की ऋतू बहुत अजीब होती है ,
साजन के बिना एक उजड़ा रकीब होती है
हर गिरती बरसात की बूंद तन को भिगोती है ,
साजन न हो तो दर्द से भरे मन को भिगोती है
हरियाली को देखकर मन मचल -मचल जाता है ,
ठंडी बयार से आँचल नम हो जाता है
सखियों के साथ झूला झुलना याद आता है ,
बचपन का वह सावन माँ का प्यार याद आता है
वह अल्हड से दिन थे हम जवानी की राह तकते थे ,
आज जवानी में वह अल्हड बचपन याद आता है
चूडी से भरे हाथ मेंहदी से रचे थे ,
झूले की पेंग बढ़ाते हम आगे ही बढे थे
आज टी वी की संस्कृति में खोये सावन को देखकर ,
वह पुराना गाँव का सावन याद आता है
वह वक्त बड़ा अजीज लगता है ,जो हमने महसूस किया ,
क्या याद करेंगे यह बच्चे ,हमें अपना ज़माना याद आता है
थोड़ा मेहंदी का रंग ,चूडियाँ ,हरियाली के गीत इनको भी दो ,
कहीं रुक न जाए यह तीज इसकी महक इनको भी दो
महरूम हो गए हैं खुशियों के रंग से आज ये सब ,
इस उजड़ी सभ्यता को त्योहारों का कुछ नूर भी दो
क्या याद करेंगे ये बच्चे अपनी जवानी के दिनों में ,
हमें तो गाँव की गलियों का बचपन याद आता है -बचपन याद आता है ........
4 Comments:
ye bachpan ke din hi bade suhane hote hai,sunder rachana
sahi kaha aapne..wo bachpan ke din aur barish ki dhimi dhimi bundo me ghar ke aangan me uchhalna kudana koi kabhi bhi nahi bhul payega..
sundar geet...
सच में आज के बच्चे क्या जाने,वो गाँव के दिन और मौज मस्ती.....!कम्पूटर और टी वी उनकी भरपाई नहीं कर सकते!एक शिक्षक होने के नाते अभी भी गाँवों में वो जमाना देख लेता हूँ..........
आपने तो बचचन के दिनों की याद दिला दी.......... जब हम भी क्रिकेट और फुटबाल के पीछे जान दिया करते थे............
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