Sunday, August 2, 2009

अस्पताल का दर्द

यह कविता मैंने अस्पताल में लिखी मेरे श्वसुरजी का आपरेशन था इस दरम्यान अस्पताल में रही ,वहां की पीड़ा देखी ,मन रो उठा उन्ही को कविता के रूप में उकेरने का प्रयास है प्रभू सबकी रक्षा करे
रात की खामोश चादर में ,कुछ नीरवता झलक रही है -
सब शांत से पड़े हैं -दर्दों में ,पर कुछ सिसकियाँ उभर रहीं
हर के गम अलग हैं -दर्द के साये अलग हैं ,
पर शांत निस्तब्धता में -सब तड़प से रहे हैं
संसार की हरशह दर्द और गम से भरी हुई है ,
सब चुप से पड़े हुए हैं पर चीत्कार कर रहे हैं
अस्पताल के नीरस वातावरण में सब सो रहे हैं ,
जो पीड़ित हैं वह -रह रह कर रो रहे हैं
दर्द सबके अलग अलग -पर पीड़ा एक है ,
जिंदगी सबकी जुदा है -पर जीवन एक है
अचानक किसी का अपना सगा दूर हो गया है ,
जिंदगी रूक गई है और वह कहीं खो गया है
उनकी पीड़ा उनका दर्द किस तरह वह बयाँ करें ,
समझ नही आता उन्हें कैसे अलविदा करें
इस मौत में भी लोग उत्सव मना रहें हैं ,
अपने संबन्धी को दिल से विदा दे रहे हैं
यहाँ मैंने म्रत्यु का त्यौहार देखा है ,
अपनों का कटु व्यवहार देखा है
चीत्कार करते रिश्तों का ,
करुण हा -हाकार देखा है ...हाहाकार देखा है .....

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3 Comments:

At August 2, 2009 at 11:14 AM , Blogger विवेक said...

संवेदनशील और करुण कविता...खूबसूरत.

 
At August 2, 2009 at 11:40 AM , Blogger श्यामल सुमन said...

स्थिति का सजीव चित्रण और संवेदनशील रचना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

 
At August 2, 2009 at 3:38 PM , Blogger M VERMA said...

बहुत सम्वेदनशील

 

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