कलाकार से मुहब्बत
कई बार महसूस हुआ कि मुहब्बत की घटना घटेगी ,
इस मुहब्बत में स्वर्ग के सुख की कल्पना होगी ,
इस सुख में एक दोजख जैसा दर्द भी होगा -
जिसमें से मुझे उमर भर गुजरना होगा -
मैं अपने जिस्म के होंठो से तुम्हारे जिस्म को एक ही साँस में पीना चाहती थी ,
नर्क में जल रहे भावों के साथ -सारे स्वर्ग को अपनी बाहों में समेट लेना चाहती थी ,
पर क्या कभी मुहब्बत का दर्द यूं कम हो पाया है ,
इंसान ने जो भी सोचा क्या कभी वो पाया है ?
स्वर्ग मेरी बाहों में था पर पाँव हवा में लटक रहे थे -
दिल में एक दर्द था ,और पाँव दोज़ख की आग में जल रहे थे
मैंने उससे मुहब्बत की जो वक्त के साथ भाग रहा था ,
मैं उसकी मुहब्बत में कैद थी -वह जीवन सवाँर रहा था ,
कहा उसने -मेरे पास मुहब्बत करने का वक्त नही ,कैसे करूं ,
मैंने कहा -मैं अपनी मुहब्बत और वक्त का क्या करूं ?
उत्तर उसके पास न था -उत्तर मेरे पास भी न था ,
पर उत्तर का होना ही तो प्रश्न के अस्तित्व का प्रमाण न था ,
मैंने मुहब्बत के एसिड को पीकर ख़ुद को बंधन मुक्त किया ,
पर मैं भूल गई मेरा अस्तित्व केवल मांस का बुत नहीं -
रंगों और रेखाओं का बुत था ,
जो अभी भी बाकी है और कलाकार की कला में शामिल है ,
जब मेरे झुलसे होंठ जिंदगी से मिलने वाली पीडा से हँस रहे थे ,
तब जवान और लाल ,मेरे कैनवेस के होंठ -
जिंदगी से मिलने वाली सज़ा से रो रहे थे
Labels: केनवैस अस्तित्व, रंग
4 Comments:
इस समय आप ऑनलाइन हैं!
चैटिंग करना चाह रहा था,
पर आपका ईमेल पता नहीं मिल पाया!
अत: अपना संदेश इस तरह आप तक पहुँचा रहा हूँ -
पहली बार "सरस पायस" को आपका आशीष मिला!
आभारी हूँ!
बहुत निकट से हैं आप -
मैंने बरेली कॉलेज, बरेली से एम.एस-सी की है
और 9 साल नैनीताल जनपद में रहा हूँ!
एक तरह से अब भी
नैनीताल (ऊधमसिंहनगर) में ही हूँ!
पेशे से अध्यापक हूँ!
जानना चाहता हूँ -
"सरस पायस" के बारे में आपको कैसे पता चला?
"पर मैं भूल गई मेरा अस्तित्व केवल मांस का बुत नहीं -
रंगों और रेखाओं का बुत था ,
जो अभी भी बाकी है और कलाकार की कला में शामिल है ,
जब मेरे झुलसे होंठ जिंदगी से मिलने वाली पीडा से हँस रहे थे ,
तब जवान और लाल ,मेरे कैनवेस के होंठ -
जिंदगी से मिलने वाली सज़ा से रो रहे थे"
डॉ. करुणा पाण्डेय जी!
इस सुन्दर गवेशणात्मक अभिव्यक्ति के लिए,
साधुवाद।
Apne sahi kaha hai. mera bhi manana hai Sapno ke ped per hakikat ke phal kam lagte hain. per Apki bachi hui her khisi puri ho ye kamana hai.Apne achachha likhtin hain
bahut achchhee rachnaa hai
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