Sunday, August 23, 2009

सपना

तसब्बुर में भी तेरी झील सी गहरी आखें दिखती हैं ,
जो दर्द नहीं प्यार से डूबने की याद दिलाती हैं ,
मैं रोज़ रात का इंतज़ार करता हूँ -
क्योंकि नींद नहीं सपनों में तू आती है ,
जब तेरे बिखरे गेसू मेरी सांसों से टकराते हैं -
तो रोते -रोते मेरे दर्द हंसने लग जाते हैं ,
मैं हकीकत समझ उनको पकड़ने लगता हूँ -
तो मेरी बीबी के बाल मेरे हाथ में आ जाते हैं

6 Comments:

At August 23, 2009 at 4:20 PM , Blogger ओम आर्य said...

बहुत ही गहराई है ..............खुब्सूरत

 
At August 23, 2009 at 4:29 PM , Blogger परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sundar rachanaa hai.badhaai

 
At August 23, 2009 at 6:33 PM , Blogger समयचक्र said...

बहुत बढ़िया कविता

 
At August 23, 2009 at 6:57 PM , Blogger निर्मला कपिला said...

वाह वाह बहुत बडिया बधाई

 
At August 23, 2009 at 7:07 PM , Blogger अर्चना तिवारी said...

बहुत सुंदर रचना...

 
At August 23, 2009 at 10:25 PM , Blogger Udan Tashtari said...

उम्दा भाव!

श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामनाएं-
आपका शुभ हो, मंगल हो, कल्याण हो.

 

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