इंतज़ार
कल की आस में हम आज का जहर पी रहे -
दिन को देखने के लिए रात से गुज़र रहे
हर कली चमन की सो गई -हर कली गगन की सो गई -
पर मेरे मन की कली न सो सकी न जग सकी
मेरा दिल बुझ गया कल की आस बाकी है
हर साँस बोझिल है ,पर मेरी प्यास बाकी है
जब -जब चांदनी खिली ,आरजू मचल गई ,
उनकी इक झलक लिए नींद बोझिल हो गई
तेरी जुस्तजूं को हमने प्यार है क्यूँ किया ,
आहटें जब भी सुनी इंतज़ार क्यूँ किया
मयकदे में जा के भी हम न पी सके कभी ,
पीना चाहा दिल ने जब बेकरार क्यूँ किया
होश हम खो चूके चाहत में तेरी डूबकर ,
आँख जब मेरी खुली दीदार तेरा क्यूँ किया
हसरतें लेकर जब चल दिए जहाँ से हम ,
कब्र में बैठकर तेरा ही इंतज़ार क्यूँ किया
4 Comments:
बढ़िया है.
thodi-si acchhi aur bhi ho jaati...agar thodi si lekhika dwraa aur bhi padh lee jaati....thoda tharkar likhne se cheezen khoobsurat ho jaya karti hain.....!!
भावमय रचना. भावनाओ का अतिरेक
कब्र में बैठकर इन्तिज़ार ...गजब का हौसला है ..
शुभकामनायें ..!!
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