Monday, August 24, 2009

इंतज़ार

कल की आस में हम आज का जहर पी रहे -
दिन को देखने के लिए रात से गुज़र रहे
हर कली चमन की सो गई -हर कली गगन की सो गई -
पर मेरे मन की कली न सो सकी न जग सकी
मेरा दिल बुझ गया कल की आस बाकी है
हर साँस बोझिल है ,पर मेरी प्यास बाकी है
जब -जब चांदनी खिली ,आरजू मचल गई ,
उनकी इक झलक लिए नींद बोझिल हो गई
तेरी जुस्तजूं को हमने प्यार है क्यूँ किया ,
आहटें जब भी सुनी इंतज़ार क्यूँ किया
मयकदे में जा के भी हम न पी सके कभी ,
पीना चाहा दिल ने जब बेकरार क्यूँ किया
होश हम खो चूके चाहत में तेरी डूबकर ,
आँख जब मेरी खुली दीदार तेरा क्यूँ किया
हसरतें लेकर जब चल दिए जहाँ से हम ,
कब्र में बैठकर तेरा ही इंतज़ार क्यूँ किया

4 Comments:

At August 24, 2009 at 11:07 PM , Blogger Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

 
At August 24, 2009 at 11:29 PM , Blogger राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

thodi-si acchhi aur bhi ho jaati...agar thodi si lekhika dwraa aur bhi padh lee jaati....thoda tharkar likhne se cheezen khoobsurat ho jaya karti hain.....!!

 
At August 25, 2009 at 3:46 AM , Blogger M VERMA said...

भावमय रचना. भावनाओ का अतिरेक

 
At August 25, 2009 at 7:35 AM , Blogger वाणी गीत said...

कब्र में बैठकर इन्तिज़ार ...गजब का हौसला है ..
शुभकामनायें ..!!

 

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