सफर जिंदगी का सुनसान होता गया -
हर वतन ख़ुद-व्-ख़ुद वीरान लगता रहा ,
चमन में फूल खिलते रहे ,महकते रहे -
माली चमन का थकन महसूस करता रहा
फूल चुनने थे मगर कांटे मिलते रहे -
हम तरसते रहे ये जग हँसता रहा ,
थक गएथे हमीं जिंदगी से मगर -
मौत आई तो जिंदगी से प्यार हो गया
सूने दिल में दर्द महसूस करते रहे
प्यासे होकर अंधेरे में तड़फते रहे ,
कोई अपना न था कोई गैर न था -
फ़िर भी अपनेपन के लिए हम तरसते रहे ,
मौत आती है झटके से तो दर्द नहीं होता
मौत क्या है यह पूछो उससे जो इंतज़ार करता रहा है ,
जिंदगी की कीमत बहुत बड़ी है ना जानते थे हम -
मौत के करीब गए तो जिंदगी से प्यार हो गया................
6 Comments:
कोई अपना न था कोई गैर न था -
फ़िर भी अपनेपन के लिए हम तरसते रहे
अति सुंदर
तेज धूप का सफ़र
सुन्दर अभिव्यक्ती। लाजवाब रचना
मौत के करीब आये तो जिंदगी से प्यार हो गया ...हो ही जाता है ..जब दामन छुटने लगता है तब उस पर कौन था ...उसकी अहमियत सामने आती है ..
अच्छी रचना ...!!
क्या बात है!!
सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
भाव अच्छे है लेकिन इन्हे कविता की शक्ल मे ढालने के लिये थोड़ा प्रयास करना होगा ।
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