क्यूँ नहीं किया
रूप का साक्षात्कार क्यूँ नहीं तुमने किया ,
दर्द का इक अहसास क्यूँ नहीं तुमने किया ,
शम्मा की तरह जलती रहीं तुम रात भर ,
क्यूँ नहीं परवाने से प्यार है तुमने किया
गर्दिशे जब भी पडी हाथ थामा है उसी का ,
आज जन्नत की राह में याद क्यूँ न उसको किया ,
थी सजी महफ़िल तुम्हारी इश्क का दामन लिए ,
क्यूँ रही रूठी यहाँ यूं -इकरार न उससे किया
आज क्यूँ यूं रो रही हो वक्त के चुक जाने पर ,
प्यार लेकर जब बढ़ा वो ,एतवार क्यूँ न किया
थक गए ये चाँद सूरज ,थक गई है रौशनी ,
महफिलें जब सज रहीं थी -इस्तकबाल क्यूँ न किया
6 Comments:
वाह, बहुत बढिया रचना,।
सही प्रशन है क्यों नहीं किया
बहुत सुन्दर रचना...लिखती रहें...
नीरज
बढिया रचना, सुन्दर्
bahut sundar rachna....
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