सब कुछ लुटाकर रह गए
रिश्तों के गलियारों में हम अकेले रह गए ,
सोचते हैं बैठकर हम क्यों अकेले रह गए ,
जब तड़प तुमने करी थी -हमने दामन ही बढाया ,
आज अपना रीता दामन लेकर हम रह गए
इस जहाँ के हर रिश्ते को हमने सदा श्वास दिया ,
आज जब देखा उन्हें निश्वास होकर रह गए
हर जगह कुर्बान की हैं हमने दिलों की महफिलें ,
आज दिल में सैकडों आघात लेकर रह गए
छोड़ दो इन रिश्तों को- बस जिंदगी का लुत्फ़ लो ,
पर क्या करे अब लुत्फ़ लेकर -हम सब कुछ लुटा कर रह गए
2 Comments:
हर जगह कुर्बान की हैं हमने दिलों की महफिलें ,
आज दिल में सैकडों आघात लेकर रह गए
सुन्दर अभिव्यक्ति
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत -बहुत आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
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