Monday, November 9, 2009

सब कुछ लुटाकर रह गए

रिश्तों के गलियारों में हम अकेले रह गए ,

सोचते हैं बैठकर हम क्यों अकेले रह गए ,

जब तड़प तुमने करी थी -हमने दामन ही बढाया ,

आज अपना रीता दामन लेकर हम रह गए

इस जहाँ के हर रिश्ते को हमने सदा श्वास दिया ,

आज जब देखा उन्हें निश्वास होकर रह गए

हर जगह कुर्बान की हैं हमने दिलों की महफिलें ,

आज दिल में सैकडों आघात लेकर रह गए

छोड़ दो इन रिश्तों को- बस जिंदगी का लुत्फ़ लो ,

पर क्या करे अब लुत्फ़ लेकर -हम सब कुछ लुटा कर रह गए

2 Comments:

At November 9, 2009 at 5:12 PM , Blogger M VERMA said...

हर जगह कुर्बान की हैं हमने दिलों की महफिलें ,

आज दिल में सैकडों आघात लेकर रह गए
सुन्दर अभिव्यक्ति

 
At January 2, 2010 at 12:56 PM , Blogger Pushpendra Singh "Pushp" said...

इस सुन्दर रचना के लिए बहुत -बहुत आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं

 

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