Thursday, May 2, 2013

मीत


हेल्लो दोस्तों  करीब चार  साल बाद आपके बीच फिर आई हूँ ,इस बीच मेरी तीन पुस्तकें पब्लिश हो गयी ,"'अभिनव -संग्रह '' कविता  संग्रह ''रघुवंश और रामचरित मानस ''तुलना और '  '' यथार्थ की चादर '' उपन्यास   एक नई कविता जो मैंने डी डी वन के कवि  सम्मलेन में प्रस्तुत की ,, आप के साथ शेयर कर रही हूँ \\
मिल जाते हैं मीत कभी पथ चलते चलते
चौराहे में मिलने वाले मीत नहीं होते
शब्दों  को  बांधों चाहें  जिस  लय  में ,,
दर्द  नहीं हो जिन शब्दों  में वो  गीत नहीं होते ,,,,,
हर  हंसने  वाले चॆहेरे  पर आकर्षण  है
किन्तु नहीं  प्रत्येक  हसीं  में अपनापन  है ,
नहीं  ठहरती  नज़र कहीं  भी  किसी रूप पर
कभी  अटक  जाता वैरागी  मन है '''''''''''''
चौराहे  का मीत अगर  पथ साथ निभा दे जीवन भर
सपनों  के  कन्धों पर अरमान नहीं संजोते  हैं ,,
जो मिलते हैं राह चले वो  साथ सदा ही निभाते हैं
पर जीवन की धुप छाँव को खेल कहाँ हम पाते हैं '''''''
अरमानों की लाशों पर प्यार के गीत नहीं होते
 चौराहों पर मिलने वाले मीत नहीं होते ,,,,,,मीत नहीं होते ,,,,,,मीत नहीं होते ,,,,,,,,

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