bhav
चौराहे पर मिलने वाले मीत नहीं होते ।
शब्दों को बांधो चाहे जिस लय में
दर्द नहीं हो जिन गीतों में वह गीत नहीं होते ।।
रिश्तों के गलियारों में हम अकेले रह गए ,
सोचते हैं बैठकर हम क्यों अकेले रह गए ,
जब तड़प तुमने करी थी -हमने दामन ही बढाया ,
आज अपना रीता दामन लेकर हम रह गए
इस जहाँ के हर रिश्ते को हमने सदा श्वास दिया ,
आज जब देखा उन्हें निश्वास होकर रह गए
हर जगह कुर्बान की हैं हमने दिलों की महफिलें ,
आज दिल में सैकडों आघात लेकर रह गए
छोड़ दो इन रिश्तों को- बस जिंदगी का लुत्फ़ लो ,
पर क्या करे अब लुत्फ़ लेकर -हम सब कुछ लुटा कर रह गए
अंधकार को भगाओ कुछ यूं दीप जलाकर
रूप का साक्षात्कार क्यूँ नहीं तुमने किया ,
हम निरुत्तर हो जाते हैं ---क्योंकि
कुछ उत्तर बतलाने लायक नही होते ,
उन्हें महसूस किया जाता है ,
जैसे हवा का चलना, ओस की बूंद
भगवान् का अस्तित्व , धूप की गरमी
सामने हैं पर सिर्फ़ अहसास किए जाते हैं
वैसे ही दिल के दर्द महसूस किए जाते हैं ,
दर्द बतलाओ तो दर्द बयान् नही होता
पर दर्द एक है इसका अनुभव जुदा नही होता ........
सभांल कर रख ले इन लम्हों को