Monday, June 29, 2009

एक सत्य

जिन्दगी में तृप्ति नहीं बस प्यास है आँख में न अश्रु है न हास है --
म्रत्यु तो है नवीन जिन्दगी ,नश्वर शरीर एक नग्न लाश है
जब धरा पर देह को रखकर चला ,मुस्कराए आंसू और रोतीरही हँसी-
अन्तिम यात्रा पर बढ़ी जब देह तब ,मौत मुस्कराई और रोई जिन्दगी
चेतना जब तक रही है देह में ,वह सदा ही अपरिचित ही रहा -
यह नियम संसार का है पुराना ,जब चला गया मेहमान तब पहचाना गया
हर प्रश्न का उत्तर किसे मालूम है ,सब निरुत्तर हैं यहाँ ,सब प्रश्न हैं -
एक दर्पण टूटकर सौ रूप धरता ,हर दर्पण में बस नश्वर अक्स है

Friday, June 19, 2009

खामोश संदेश

चिडियों की चहचहा हट ,हवा का मंद मंद चलना ,
निस्तब्ध पेड़ों का खडा होना ,पत्तियों का मचलना ,
हलके हलके धूप की खामोशी में ,किरणों का फैलना,
रात्री में पडी ओस की बूंदों का -ख़ुद ब ख़ुद ओझल होना ,
प्रकृति की अदाएं हैं ,या प्रकृति का महकना ,
हम नहीं जानते -पर न जानकर भी हमारा मन महकता है ,
पेड़ों के समूह उठकर हमें सिखाते हैं ,
अपनी हरियाली का सागर हमें पिलाते हैं ,
और सीख देते हैं हमें -अनेकता में एकता की ,
पेड़ों का स्वरूप अलग है -पर रंग एक है ,
फूलों की महक अलग है -पर ढंग एक है ,
हवा का चलना अलग है- पर गति एक है ,
धूप की किरणों का फैलाव भी एक है ,
मानव तू कितने रूपों ,रंगों ,गंधों ,गति में रह
पर तेरा ध्येय एक रहे ,लक्ष्य एक रहे ,
यह प्रकृति का संदेश है ,.......
रे मानव ---तू सीख ,यह प्रकृति का संदेश है ....

Wednesday, June 17, 2009

ज़रा सोचिये तो कितना महत्व है ,

यह कविता नही तुकबंदी है ,पढिये और मुस्कराइए
ज़रा सोचिये तो कितना महत्व है ......
शादी में बराती का ,औजार में दरांती का
चुनाव में जाति का,खाने में चपाती का
बुढापे में लाठी का ,ननिहाल में नाती का
जीवन में साथी का ,प्यार में पाती का
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
ससुराल में साली का ,चाय की प्याली का
घर में नाली का ,बुर्के में जाली का ,
ताले में ताली का ,ट्रक में ट्राली का
बगीचे में माली का ,कवि सम्मलेन में ताली का
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
बच्चों के लिए नानी का ,सोते समय कहानी का ,
रंगों में रंग धानी का ,खाने में पानी का ,
धर्म में दानी का ,व्यापार में हानि का
संसार में प्राणि का ,जीवन में जवानी का
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
गाडी में गति का ,पढने में मति का ,
पीने में लती का ,चोरी में क्षती का
पुराणों में सती का ,काव्य में कृति का,
घर में पति का ,प्रेम में रति का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
ससुराल में देवर का ,सावन में घेवर का ,
औरतों में जेवर का ,मिल में लेबर का ,
आइसक्रीम में फ्लेवर का ,जीवन में कलेवर का ,
परीक्षा में फेवर का ,मौहल्ले में नेबर का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
मेट्रो में मोओल का ,फोन में काल का ,
माँ के लिए लाल का ,नौका में पाल का ,
लकडी की टाल का ,मुम्बई में चाल का
जीवन में काल का ,प्यार में गाल का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
मथुरा में मिठाई का ,त्योहार में हलवाई का ,
ससुराल में जमाई का ,पहाड़ में खाई का ,
दूध में मलाई का ,गाँव में लुगाई का ,
सर्विस में कमाई का ,सूट में टाई का,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......
त्योहार में दिवाली का ,यात्रा में तैयारी का ,
चहरे में दाढी का,आवारागर्दी में मवाली का ,
कोर्ट में गवाही का ,महफ़िल में कव्वाली का ,
होंठो में लाली का ,नैनीताल में भवाली का ,
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......|
ज़रा सोचिये तो कितना महत्त्व है .......||

समर्पित प्यार

समर्पित प्यार

वेदना के इन स्वरों को अक्स अपना देते जाओ
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ
शवास मैं तो तुम बसे हो ,नि:शवास मैं तेरी ही सुरभि
प्रणय की बेला न आई ,फिर भी है तेरी महक ही
अर्घ्य दूंगी मैं तुम्हे ही- न इसको यूँ ठुकराओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
मैंने तुमसे कुछ न चाहा, बस तुम्हें ही अपना माना
तुमको चाहा तुमको पूजा इस जहाँ में तुमको जाना
दीपकों की आंख में देकर उजाला यूँ न तरसाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
स्वप्न को तुम यूँ न छेडो जी उठेगें इस नयन मैं
पुंज तारों का खड़ा है मचल उठेगें इस गगन मैं
दफन कर दो राग को अपने ह्रदय मैं ,फिर यूँ जाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ |
प्यास मेरी बुझ चुकी है भावमय सागर अनल में
होंठ मेरे तृप्त हो गए डूबकर तेरे विरह में
इस ह्रदय के भावः को न यूँ उजागर करके जाओ ,
तुम चले जाना यहाँ से प्यार मेरा लेते जाओ ||

Tuesday, June 16, 2009

सीख

जिंदगी में तृप्त है गर कोई जहाँ में
ढूंढ़ कर लाओ उसी से ,सीख लूगीं पाठ तृप्ति का ,
स्रष्टि में गर मस्त है यादों में कोई
सीख लूगीं पाठ मै मस्ती का यूँही
है अगर खुश और बांटता है जो खुशी को
सीख लूंगी मैं उसी से खुश ही रहना ,
प्रेम से सोता है जो भी इस जहाँ में ,
सीख लूंगी नींद के आगोश में रहना ,
मुस्कराता है यहाँ जो यूँ सदा ही
-सीख लूंगी मैं उसी से मुस्कराना ,
हँस के जो करता है स्वागत अभावों का
सीख लूंगी मैं उसी से सत्कार करना
मैनें ढूँढा इन सभी को इस जहाँ में
पर निराशा ही मिली मुझको सदा ही
गर जो तुम ले आओगे कोई यहाँ पर
मैं खुदी को वार दूंगी उस सदा पर ||

Sunday, June 14, 2009

अनुभव

हमने तो ख्वाब देखा था महफ़िल सजाने का ,
हमें तन्हाईयाँ मिली --
रात के अंधेरे में उजाला ढूंढा
तो हमें परछाइयाँ मिली
ज़ख्म जैसे भी मिले सीने में छिपाए हमने
फ़िर भी हमें रुस्वाइयाँ मिली ,
वो लोग और होते हैं जो दामन को खुशियों से सजा देते हैं
हमें तो वफा के बदले वे वफा इयान मिली ||

अनुबंध

आंख से निकलकर अन्दर नही जाऊंगा अश्रु का आंख से यही अनुबंध है ,
न कहकर भी दुःख को बहा ले जाऊंगा ,
सुखी होने पर भरी आंख से निहारूंगा ,
अश्रु का आंख से यही अनुबंध है ,
शब्दों के तीर चलाकर तरकश में न लौटूंगी
जिव्हा का मुख से यही अनुबंध है ,
शब्द मीठे हों या कसैले कहकर न वापस लौटूंगी
मानव के चरित्र को बयाँ कर जाउंगी
पढ़े लिखे का अन्तर डिग्री से न मापों तुम
शब्दों के माध्यम से मैं तुमको बतलाऊँगी ,
जिव्हा का अपने मुख से यही अनुबंध है ,
जीवन अच्छे बुरे कर्मों का लेखा -जोखा है
कर्मों को भोगकर मनुष्य निवृत हो जाता है ,
रिश्ता क्या है यह कोई नही जानता है
पर रिश्तों के बंधन में ही रह जाता है ,
अपनों की मार सेलुहुलुहान कर मानव तुझे
संसार की निस्सारता दिखाऊंगा ,आत्मा का शरीर से यही अनुबंध है

Saturday, June 13, 2009

दीप की व्यथा --मानव की कथा

एक दीप जल रहा था ,मन में यह आस लिए -
तेल कोई डालेगा प्यार के उदगार लिए -
इंतजार में कटी जिंदगी जो शेष थी -
तेल उसमें न पड़ा लौ बुझने लगी -
हँसके कहा दीप ने इस असीम विश्व से -
एक छोटा सा कोना क्या नहीं है मेरे लिए -
मुखर होके विश्व ने दीप से कुछ यूँ कहा -
नया दीप बन गया है जग की रौशनी के लिए ,
अशक्त हो तुम यहाँ ,क्या प्रकाश दोगे
तुमजो ख़ुद ही तेल मांग रहा ,क्या करेगा जग के लिए
देखकर विश्व के राग को दीप ने ,
मन में सोचा और विवेचना की ,
नश्वर इस संसार में ,स्वार्थ के सब रिश्ते हैं ,
जो सिर्फ़ अपने लिए जी रहे ,क्या करेगें मेरे लिए
सोचकर के दीप ने एक नि:श्वास भरी ,
आज जग छोड़ रहा मैं औरो के लिए ,
जान के अनजान के गर खता हो गई ,
माफ़ कर दो मुझे मेरी खता के लिए
और दीप बुझ गया मन में ये व्यथा लिए ,
चल दिया वो दीप अकेला -उस यात्रा के लिए
कौन किसके संग इस संसार में है बंधा
सब हैं एक दूसरे से बंधे अपने स्वार्थ के लिए
देखकर प्रिय जनों की खामोशी को ,
दीप हंसने लगा ,लौ बुझने लगी ,
रिश्ते छल हैं -नि:सार संसार को जान लिया ,
क्या करूँगा जीकर -जाता हूँ प्रयाण के लिए ,
और दीप चल दिया महाप्रयाण केलिए -
और दीप चल दिया महाप्रयाण के लिए ...............

Friday, June 12, 2009

तस्वीर --एक सच

इक दिन हम भी तस्वीर हो जायेंगे ,
बोलते बोलते हम चले जायेंगे और एक फ्रेम मैं जड़ दिए ,
जायेंगे लोग आएंगे -फूल माला पहिनायेगे ,
हमारे गुणों का बखान करके चले जायेंगे
जो बहुत करीब हैं वो दो आंसू भी बहा जायेंगे
ये तो दुनिया का दस्तूर है कुछ अन्तर न आएंगे
इस दस्तूर को सब यूँ ही निभाते चले जायेंगे
शोक की मूल बात प्रयोजनीय वस्तु का खोना है
जो जितना प्रयोजनीय है उसके लिए उतना ही रोना है ,
जो चुक गया है किसी काम का नही -
उसके लिए क्यों इतना रोना है ,
अंतर्चित से विदा कर कहते हैं ,जीवन का तो अंत यही होना है
और सौजन्य का रंग चढ़ा कर कहते हैं
मृत्यु अमोघ है निश्चित है मृत्यु के लिए क्या रोना है
रे मानव यहाँ सब स्वार्थ के बंधन हैं -
स्वार्थ मैं बंधा तू इक खिलौना है ,
मृत्यु का शोक जीवन पर्यंत होना है ,
मृत होते ही देह के सांसारिक क्रिया मैं लगना है ,
लोग तैयारी मैं लग जाते हैं और कर्तव्य बोध में फंस जाते हैं
शोक गौण हो जाता है कर्तव्य मुख्य हो जाते हैं
आज जीवित देह कल राख में बदल जाती है -
और हमारी तस्वीर ,एक फ्रेम में लग जाती है ,
और हम तस्वीर हो जाते हैं

Monday, June 8, 2009

इन्तजार --एक यथार्थ

औरत नाम है एक इंतज़ार का ,
कभी ख़त्म न होने वाले इंतजार का ,
बचपन में इंतज़ार रहता है माँ बाप के प्यार का ,
ज़रा से तनाव से प्यार नफरत में बदल जाता है ,
अपनों का प्यार नसीब से निकल जाता है ,
जवानी में इंतज़ार रहता है जीवन साथी का ,
यह किस्मत है उनकी जो प्यार मिल पाता है साथी का ,
ऑफिस से आने पर घर में इंतजार रहता है ,
पगार का ,प्यार का ,अपने सपनों का ,
इंतजार बस इंतजार है
शादी के बाद आँगन फूलों से महके ,
बच्चों का इंतज़ार रहता है ,
परवरिश करते हुए उनके सोने जागने ,
खेलने पढने का इंतजार रहता है
पढ़ लिख कर कुछ बन जाए तो फ़िर ,
शादी का इंतजार रहता है ,
इस तरह आपाधापी में जिन्दगी गुज़र जाती है ,
और जब इंतजार पूरा होकर औरत देखती है ख़ुद को ,
तो ढलती उम्र में एक अदद सहारे का इंतज़ार रहता है ,
किस्मत वाली होती हैं वह जिन्हें सहारा मुयस्सर होता है ,
वरना तो एक किनारे का इंतजार रहता है ,
इस तरह जिन्दगी दूसरो पर लुटाकर ,
बिना इंतजार के बुढापा आ जाता है ,
सबकी कहानी एक सी होती है ,
बस किस्मत से थोड़ा अन्तर आ जाता है ,
जब सोचती है वह कब जी अपने लिए ,
क्या किया उसने सिर्फ़ अपने लिए ,
वक्त सब गुज़र जाता है ,जिन्दगी ठहर जाती है ,
बूढा वक्त ठीक से गुज़र जाए यह इन्तजार रहता है ,
बुढापे में तो बस मौत का इंतजार रहता है ,
इंतजार बस इंतजार रहता है ................

Sunday, June 7, 2009

अतृप्त मन

न जाने कितनी गुजारिश की है तुम्हारी और कितनी रात मुझे तड़पाओगे
देखती रही हूँ मैं उम्र भर यूँ ही ,न जाने कब मुझे देखकर मुस्कराओगे
मैं चली जाऊँगी इस जहाँ से यह तमन्ना लेकर ,फिर क्या कभी तुम मुझे प्यार कर पाओगे -
नसीब अपना होता है जो देता है सुख यहाँ ,क्या कभी मेरा नसीब बदल पाओगे ,
रात दिन मैं देती हूँ दुआएं तुमको ,जाते -जाते क्या मुझे दुआ दे जाओगे ,
आदत होती है जिन्हें टालने की -वह जिन्दगी का लुत्फ़ उठा नही पाते हैं ,
जब जिन्दगी ख़ुद बढ़कर गले लगायेगी ,मुझको पता है तब भी तुम टाल जाओगे ,
अभी भीड़ है चारों तरफ़ तुम्हारे यूँ ही ,जब अकेले होगे तो क्या मुझे भुला पाओगे ,

Thursday, June 4, 2009

एक शेष स्मृति

उन पूज्य पिताजी की याद में जो हमसे बहुत दूर चले गए ::---
एक बार आप मुझे दर्शन दिखला जाइये -जिंदगी की तरफ़ मैं फिर से लौट जाऊँगी ,
आंसूओं की धार को ख़ुद हटा जाइये ,वेदना मैं सारी अपनी पी जाऊँगी
होंठ उनके कुछ हिले और चाह ज्यूँ मुझसे कही -
रूठ कर क्यों चल दिए जब राज़ सब मुझसे कहे ,
एक बार बस चाहतों को आप पूरी कर जाइये
सच कहती हूँ मैं आपकी बातें भूल जाऊँगी
गीता का सार हमको जीते जी मालूम न था
आपने मरकर के वो ज्ञान सब समझा दिया
एक बार आकर हमें वह उपदेश बस दे जाइए ,
सच में मैं आपके प्यार को भूल जाऊँगी
जो कही अनकही बातें आप संग हैं ले गए -
उन सभी चाहतों की ग्लानी हमको हो रही ,
ख़ुद आकर उन चाहतों को आप मिटा जाइए -
जिन्दगी की तरफ़ मैं फिर से लौट जाऊँगी