Monday, November 9, 2009

सब कुछ लुटाकर रह गए

रिश्तों के गलियारों में हम अकेले रह गए ,

सोचते हैं बैठकर हम क्यों अकेले रह गए ,

जब तड़प तुमने करी थी -हमने दामन ही बढाया ,

आज अपना रीता दामन लेकर हम रह गए

इस जहाँ के हर रिश्ते को हमने सदा श्वास दिया ,

आज जब देखा उन्हें निश्वास होकर रह गए

हर जगह कुर्बान की हैं हमने दिलों की महफिलें ,

आज दिल में सैकडों आघात लेकर रह गए

छोड़ दो इन रिश्तों को- बस जिंदगी का लुत्फ़ लो ,

पर क्या करे अब लुत्फ़ लेकर -हम सब कुछ लुटा कर रह गए