Sunday, July 5, 2009

आज का सत्य

औरत जीत कर भी अपना सब कुछ हार जाती है ,

मर्द हारकर भी सब कुछ जीतता रहता है

जिंदगी औरत की बड़ी कठिन है ,

जो इन्तजार के साए में ही पली है

माँबाप भाई के कठिन अनुशासन में पलकर -

हर वक्त सहमी सी जो बड़ी हुई है

ब्याह कर गई जब वह ससुराल -

तो हमेशा वहां के कायदों में ही उलझी रही है

माँ मारकर अपना भावनाओं से लड़कर ,

दूसरों के आधीन रहकर उलझनों से उबरती रही है

बच्चों और पति के लिए कर देती है जीवन अर्पण ,

पर क्या कोई शह औरत को समर्पित की गई है

आज बातें औरत की मुक्ति की करते हैं ,

पर इसी युग में औरत सबसे ज्यादा उजाड़ी गई है

हर क्षेत्र में उचाइयों को छूने पर भी ,

औरत की लाज सबसे ज्यादा लुटाई गई है

स्त्री -धन नाम था दहेज़ का उस युग में ,

पर दहेज़ के नाम पर सबसे ज्यादा जलाई गई है

पहले कभी-कभी सुनते थे युवा लडकी की लाज लुटी है ,

पर अब अबोध ,नादाँ ,बूढी ,युवा सभी ने लाज लुटाई है

पहले घर था बहुत सुरक्षित लडकी के लिए ,

अब तो घर में भी लडकी ने लाज लुटाई है

2 Comments:

At July 5, 2009 at 7:51 PM , Blogger मोहन वशिष्‍ठ said...

हर एक शब्‍द में दर्द झलक रहा है यथार्थ लिखा है आपने

 
At July 5, 2009 at 9:02 PM , Blogger अनिल कान्त said...

सच बहुत बेहतरीन तरीके से लिखा गया है ...आपकी रचना में दर्द है.....सच्चाई है

 

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