Tuesday, August 25, 2009

मौत आई तो जिंदगी से प्यार हो गया


सफर जिंदगी का सुनसान होता गया -

हर वतन ख़ुद-व्-ख़ुद वीरान लगता रहा ,

चमन में फूल खिलते रहे ,महकते रहे -

माली चमन का थकन महसूस करता रहा

फूल चुनने थे मगर कांटे मिलते रहे -

हम तरसते रहे ये जग हँसता रहा ,

थक गएथे हमीं जिंदगी से मगर -

मौत आई तो जिंदगी से प्यार हो गया

सूने दिल में दर्द महसूस करते रहे

प्यासे होकर अंधेरे में तड़फते रहे ,

कोई अपना न था कोई गैर न था -

फ़िर भी अपनेपन के लिए हम तरसते रहे ,

मौत आती है झटके से तो दर्द नहीं होता

मौत क्या है यह पूछो उससे जो इंतज़ार करता रहा है ,

जिंदगी की कीमत बहुत बड़ी है ना जानते थे हम -

मौत के करीब गए तो जिंदगी से प्यार हो गया................

Monday, August 24, 2009

इंतज़ार

कल की आस में हम आज का जहर पी रहे -
दिन को देखने के लिए रात से गुज़र रहे
हर कली चमन की सो गई -हर कली गगन की सो गई -
पर मेरे मन की कली न सो सकी न जग सकी
मेरा दिल बुझ गया कल की आस बाकी है
हर साँस बोझिल है ,पर मेरी प्यास बाकी है
जब -जब चांदनी खिली ,आरजू मचल गई ,
उनकी इक झलक लिए नींद बोझिल हो गई
तेरी जुस्तजूं को हमने प्यार है क्यूँ किया ,
आहटें जब भी सुनी इंतज़ार क्यूँ किया
मयकदे में जा के भी हम न पी सके कभी ,
पीना चाहा दिल ने जब बेकरार क्यूँ किया
होश हम खो चूके चाहत में तेरी डूबकर ,
आँख जब मेरी खुली दीदार तेरा क्यूँ किया
हसरतें लेकर जब चल दिए जहाँ से हम ,
कब्र में बैठकर तेरा ही इंतज़ार क्यूँ किया

Sunday, August 23, 2009

सपना

तसब्बुर में भी तेरी झील सी गहरी आखें दिखती हैं ,
जो दर्द नहीं प्यार से डूबने की याद दिलाती हैं ,
मैं रोज़ रात का इंतज़ार करता हूँ -
क्योंकि नींद नहीं सपनों में तू आती है ,
जब तेरे बिखरे गेसू मेरी सांसों से टकराते हैं -
तो रोते -रोते मेरे दर्द हंसने लग जाते हैं ,
मैं हकीकत समझ उनको पकड़ने लगता हूँ -
तो मेरी बीबी के बाल मेरे हाथ में आ जाते हैं

Monday, August 17, 2009

कलाकार से मुहब्बत

कई बार महसूस हुआ कि मुहब्बत की घटना घटेगी ,
इस मुहब्बत में स्वर्ग के सुख की कल्पना होगी ,
इस सुख में एक दोजख जैसा दर्द भी होगा -
जिसमें से मुझे उमर भर गुजरना होगा -
मैं अपने जिस्म के होंठो से तुम्हारे जिस्म को एक ही साँस में पीना चाहती थी ,
नर्क में जल रहे भावों के साथ -सारे स्वर्ग को अपनी बाहों में समेट लेना चाहती थी ,
पर क्या कभी मुहब्बत का दर्द यूं कम हो पाया है ,
इंसान ने जो भी सोचा क्या कभी वो पाया है ?
स्वर्ग मेरी बाहों में था पर पाँव हवा में लटक रहे थे -
दिल में एक दर्द था ,और पाँव दोज़ख की आग में जल रहे थे
मैंने उससे मुहब्बत की जो वक्त के साथ भाग रहा था ,
मैं उसकी मुहब्बत में कैद थी -वह जीवन सवाँर रहा था ,
कहा उसने -मेरे पास मुहब्बत करने का वक्त नही ,कैसे करूं ,
मैंने कहा -मैं अपनी मुहब्बत और वक्त का क्या करूं ?
उत्तर उसके पास न था -उत्तर मेरे पास भी न था ,
पर उत्तर का होना ही तो प्रश्न के अस्तित्व का प्रमाण न था ,
मैंने मुहब्बत के एसिड को पीकर ख़ुद को बंधन मुक्त किया ,
पर मैं भूल गई मेरा अस्तित्व केवल मांस का बुत नहीं -
रंगों और रेखाओं का बुत था ,
जो अभी भी बाकी है और कलाकार की कला में शामिल है ,
जब मेरे झुलसे होंठ जिंदगी से मिलने वाली पीडा से हँस रहे थे ,
तब जवान और लाल ,मेरे कैनवेस के होंठ -
जिंदगी से मिलने वाली सज़ा से रो रहे थे

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Tuesday, August 4, 2009

स्रष्टि



इस स्रष्टि में हर व्यक्ति ही अनूठा होता हैचाहे वह सच बोले चाहे वह झूठा होता है

व्यक्ति व्यक्ति से मिलकर ही -ये स्रष्टि यहाँ पर सजती है

है यह हँमारी अलग अलग द्रष्टि हर व्यक्ति पर जो बनती है

जैसी द्रष्टि होगी तेरी -वैसी ही वृष्टि बनेगी तेरी

जो रूप धरेगा नैनों में ,बन जायेगी वो कृति

तेरी नव कृति का आधार ,होती है तेरी ही द्रष्टि

तू सभंल -सभंल कर चल मानव खो न जाए कंही तेरी कृति

स्रष्टि में व्यक्ति व्यक्ति में द्रष्टि- द्रष्टि से वृष्टि ,वृष्टि से कृति बनती है

तू गलतआंकलन मत करना ,धुंधला जायेगी तेरी हर कृति

मालरोड का द्रश्य

कुछ साडी में कुछ जम्पर में, कुछ पेंट में कुछ कुरते में ,
सब घूम रहे हैं मस्ती के आलम में मेले में ,
कुछ साथ चल रहे हैं -कुछ अलग -अलग हैं ,
कुछ हाथ पकड़े हैं कुछ अगल बगल हैं
मोटे पतले सभी खुश हैं अपनी ही धुन में ,
कुछ एसा ही द्रश्य था नैनीताल की माल रोड में
बच्चों का रेला आता था स्वाभाविकता में रचा हुआ ,
अल्हड युवतियों का रेला नक्शों से भरा हुआ
अधेड़ अपने को कमउम्र दिखाने में लगे हुए -
मनचले युवक युवतियों को रिझाने में लगे हुए
उम्रदराज अपनी बीबी को समझाते हुए -
अंग्रेज अपनी अंग्रेजियत झाड़ते हुए ,
छोटी -छोटी चीजें खरीदकर बच्चे खुश हैं ,
मानो जीवन की सारी खुशी मिल गई है ,
हर कुछ खरीदने में लगा पति पत्नी को मना रहा है -पर वह दुखी है
कुछ छातों को पकड़े हैं कुछ लाठी को पकड़े हैं ,
कुछ पोतों को पकड़े हैं कुछ नाती को पकड़े हैं
खुश हैं सभी कि नैनीताल घूम रहे हैं -
मस्ती के आलम में मालरोड घूम रहे हैं
हनीमून जोड़े सब तरफ़छा गए हैं ,
अपनी बीबी के फोटो उतार रहे हैं
बीबी अपने स्टाइलिश पोज दे रही हैं -
मुस्करा -मुस्करा कर पति को रिझा रही हैं
पति को क्या पता आज की मोनालिसा की सुन्दरता -
दो साल बाद बदल जायेगी ,
उनकी प्यारी सुंदर बीबी -
चुडैल सी नजर आयेगी ,
पर खुश हैं कि हनीमून में आए हैं
बीबी साथ में है -मालरोड घूम रहे हैं
समय पैसे खर्च करके चले जाते हैं
ख़ुद को बरबाद करके खुश हो जाते हैं ,
मैं अपने घर की खिड़की से देखकर सोचती हूँ
कि क्या ये सभी इतना ही खुश हैं जितना दिखा रहे हैं ,
या दुःख से भागकर खुशियों का नकाब चढा रहे हैं ,
या सबके सामने खुश होने का आडम्बर दिखा रहे हैं
कुछ भी हो कुछ श्रण की खुशी इनके सुख का आधार बनी है ,
भविष्य कैसा भी हो पर कम से कम वर्तमान तो सुखी है

Sunday, August 2, 2009

अस्पताल का दर्द

यह कविता मैंने अस्पताल में लिखी मेरे श्वसुरजी का आपरेशन था इस दरम्यान अस्पताल में रही ,वहां की पीड़ा देखी ,मन रो उठा उन्ही को कविता के रूप में उकेरने का प्रयास है प्रभू सबकी रक्षा करे
रात की खामोश चादर में ,कुछ नीरवता झलक रही है -
सब शांत से पड़े हैं -दर्दों में ,पर कुछ सिसकियाँ उभर रहीं
हर के गम अलग हैं -दर्द के साये अलग हैं ,
पर शांत निस्तब्धता में -सब तड़प से रहे हैं
संसार की हरशह दर्द और गम से भरी हुई है ,
सब चुप से पड़े हुए हैं पर चीत्कार कर रहे हैं
अस्पताल के नीरस वातावरण में सब सो रहे हैं ,
जो पीड़ित हैं वह -रह रह कर रो रहे हैं
दर्द सबके अलग अलग -पर पीड़ा एक है ,
जिंदगी सबकी जुदा है -पर जीवन एक है
अचानक किसी का अपना सगा दूर हो गया है ,
जिंदगी रूक गई है और वह कहीं खो गया है
उनकी पीड़ा उनका दर्द किस तरह वह बयाँ करें ,
समझ नही आता उन्हें कैसे अलविदा करें
इस मौत में भी लोग उत्सव मना रहें हैं ,
अपने संबन्धी को दिल से विदा दे रहे हैं
यहाँ मैंने म्रत्यु का त्यौहार देखा है ,
अपनों का कटु व्यवहार देखा है
चीत्कार करते रिश्तों का ,
करुण हा -हाकार देखा है ...हाहाकार देखा है .....

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