याद हरियाली तीज की
ये सावन की ऋतू बहुत अजीब होती है ,
साजन के बिना एक उजड़ा रकीब होती है
हर गिरती बरसात की बूंद तन को भिगोती है ,
साजन न हो तो दर्द से भरे मन को भिगोती है
हरियाली को देखकर मन मचल -मचल जाता है ,
ठंडी बयार से आँचल नम हो जाता है
सखियों के साथ झूला झुलना याद आता है ,
बचपन का वह सावन माँ का प्यार याद आता है
वह अल्हड से दिन थे हम जवानी की राह तकते थे ,
आज जवानी में वह अल्हड बचपन याद आता है
चूडी से भरे हाथ मेंहदी से रचे थे ,
झूले की पेंग बढ़ाते हम आगे ही बढे थे
आज टी वी की संस्कृति में खोये सावन को देखकर ,
वह पुराना गाँव का सावन याद आता है
वह वक्त बड़ा अजीज लगता है ,जो हमने महसूस किया ,
क्या याद करेंगे यह बच्चे ,हमें अपना ज़माना याद आता है
थोड़ा मेहंदी का रंग ,चूडियाँ ,हरियाली के गीत इनको भी दो ,
कहीं रुक न जाए यह तीज इसकी महक इनको भी दो
महरूम हो गए हैं खुशियों के रंग से आज ये सब ,
इस उजड़ी सभ्यता को त्योहारों का कुछ नूर भी दो
क्या याद करेंगे ये बच्चे अपनी जवानी के दिनों में ,
हमें तो गाँव की गलियों का बचपन याद आता है -बचपन याद आता है ........